जन्म कुंड़ली के बारह भावों में से बारहवां भाव व्यय भाव कहलाता हैं, सामान्यतया इस भाव को अशुभ माना जाता है। इससे ज्योतिष में फिजूलखर्च, हानि, व्यय, दिवाला, मुकदमेबाजी, व्यसन, नेत्रपीड़ा, आकस्मिक खर्चे, मोक्ष एवं मृत्यु पष्चात् प्राणी की गति, भोग-विलास, शयनसुख का विचार किया जाता हैं ।
सूर्य- सूर्य के व्ययभाव में रहने पर व्यक्ति प्रतिष्ठित एवं प्रसिद्ध होता है, तथा वह हमेसा अपने नाम की प्रसिद्धि व्यय करता है। ऐसा जातक शत्रुओं के लिए काल के समान होता है, तथा उन्हीं के कारण पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
चन्द्रमा- चन्द्रमा के व्ययभाव में होने पर व्यक्ति कल्पनाशील होता है। बड़ी-बड़ी कल्पनाओं की उड़ान ऐसा जातक भरता रहता हैं। ऐसा जातक ज्यादातर लेखक, पत्रकार, नाटककार एवं सम्पादक आदि होते हैं ये जातक धूमकेतु की तरह चमकता है, प्रेम के क्षेत्र में ऐसा जातक सफल होता है तथा मनोवांछित पत्नी प्राप्त करता है।
चन्द्रमा- चन्द्रमा के व्ययभाव में होने पर व्यक्ति कल्पनाशील होता है। बड़ी-बड़ी कल्पनाओं की उड़ान ऐसा जातक भरता रहता हैं। ऐसा जातक ज्यादातर लेखक, पत्रकार, नाटककार एवं सम्पादक आदि होते हैं ये जातक धूमकेतु की तरह चमकता है, प्रेम के क्षेत्र में ऐसा जातक सफल होता है तथा मनोवांछित पत्नी प्राप्त करता है।
मंगल- जिस जातक के द्वादश भाव में मंगल होता है, वह बहुत परिश्रमी व सदैव जन-सामान्य के लिए जीता है, ऐसे जातक के मित्रों की संख्या बहुत कम होती है, ऐसे व्यक्तियो को रक्त विकार होता हैं। पराक्रम के मामले में षत्रु इनके नाम से ही घबराते हैं।
बुध- व्ययभाव में बुध ग्रह के होने पर व्यक्ति बाल्यकाल में कई रोगों से ग्रसित होता हैं। परिश्रम का पूर्ण फल जातक को प्राप्त नहीं होता हैं, फिर भी जातक चतुर, बुधिमान, विद्वान होता है। सलाहकारों एवं उपदेशकों की कुंड़ली में ये गुण मिलते हैं। ऐसा जातक विदेशो में अच्छे संपर्क बनाकर ख्याति अर्जित करता है।
गुरू- गुरू के व्यय भाव में होने पर जातक दयालु, दानी, धर्मज्ञ, न्यायविद् बनता है। जातक अपनी योग्यता के कारण उच्चतम पद प्राप्त करता है। ऐसे जातक के जीवन में वाहन योग प्रबल होते है। व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी सारी अभिलाषायें पूर्ण करता है। ऐसा जातक ज्यादातर कोर्ट-कचहरी संबंधी विवादों में उलझा रहता हैं।
शुक्र- शुक्र को भोगप्रिय ग्रह माना जाता है। व्ययभाव में रह कर शुक्र प्रबल एवं शक्तिषाली हो जाता है। भोग-विलास के साधन, भौतिक विलासिता की वस्तुओं का उपभोग, श्रृंगारप्रिय एवं सजावटी वस्तुओं पर व्यय ऐसा जातक सर्वाधिक करता हैं। द्वादश भाव का शुक्र आराम पसंद जीवन एवं पूर्ण स्त्री सुख देता है। ऐसे जातकों के एक से अधिक स्त्रियों से संबंध रहतें हैं।
शनि- यदि द्वादष भाव में शनि हो तो जातक अत्यन्त धनवान एवं प्रसिद्ध होता हैं। समाज एवं मित्रों में ऐसा जातक लोकप्रिय होता हैं। तथा जन-सामान्य में अपनी अमिट छाप छोड़ता है। निम्न वर्ग एवं मजदूर वर्गों में विशेष सम्मान प्राप्त करता है। ऐसा जातक यात्रा का शौकीन होता है। तथा जातक यात्राओं से धनार्जन करता है।
राहू- द्वादश भाव में राहू व्यक्ति को अत्यधिक, चिन्तनशील, खोजी, दूरदर्शी तथा दार्शनिक बनाता है। राहू को राजनिति का कारक ग्रह कहा जाता है। व्ययभाव का राहू जातक को राजनीति का माहिर खिलाड़ी बनाता है, एवं राजनीति में सर्वोच्च पद तक पहंुचाने में मद्दगार होता है।
केतु-द्वादश स्थान का केतु जातक को पूर्णतः संघर्षषील बनाता है। जीवन में उत्थान-पतन का सामना जातक करता रहता है, फिर भी जातक कठोर परिश्रम के बल पर इन कठिनाइयों पर सफलता प्राप्त करता है। जातक सफल पत्रकार, सम्पादक, लेखक एवं राजनीतिज्ञ होते है।